GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 150 - अर्थ
From जैनकोष
सुखयतु सुखभूमि: कामिनं कामिनीव,
सुतमिव जननी मां शुद्धशीला भुनत्तु
कुलमिव गुणभूषा, कन्यका सम्पुनीतात्-
जिनपतिपदपद्म-प्रेक्षिणी दृष्टिलक्ष्मी: ॥150॥
सुखयतु सुखभूमि: कामिनं कामिनीव,
सुतमिव जननी मां शुद्धशीला भुनत्तु
कुलमिव गुणभूषा, कन्यका सम्पुनीतात्-
जिनपतिपदपद्म-प्रेक्षिणी दृष्टिलक्ष्मी: ॥150॥