GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 30 - टीका हिंदी
From जैनकोष
राजा आदि से उत्पन्न होने वाले आतंक को भय कहते हैं । भविष्य में धनादिक-प्राप्ति की वांछा आशा कहलाती है। मित्र के अनुराग को स्नेह कहते हैं । वर्तमानकाल में धन प्राप्ति की जो गृद्धता अर्थात् आसक्ति होती है, उसे लोभ कहते हैं । जिसका सम्यक्त्व निर्मल है ऐसा शुद्ध सम्यग्दृष्टि जीव इन चारों कारणों से अर्थात् भय, आशा, स्नेह, लोभ के वश से कुदेव, कुशास्त्र और कुगुरु को न तो प्रणाम करे, मस्तक झुकाकर नमस्कार करे और न उनकी विनय करे- हाथ जोड़े तथा न प्रशंसा आदि के वचन कहे ।