GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 98 - टीका हिंदी
From जैनकोष
मूर्धरुह, मुष्टि और वासस् इन तीन शब्दों का द्वन्द्व समास हुआ है । यहाँ पर बन्ध शब्द का प्रत्येक के साथ सम्बन्ध होता है । अत: मूर्धरुहबन्ध, मुष्टिबन्ध और वासोबन्ध ये तीन शब्द बने हैं । बन्ध का अर्थ बन्ध का काल है । जैसे -- जब तक चोटी में गांठ लगी है, मुठ्ठी बंधी है, वस्त्र में गांठ लगी है, आसन लगाकर बैठा हूँ, कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ा हूँ अथवा पद्मासन से बैठा हूँ, तब तक सामायिक करूंगा । इनमें जो काल लगता है, वह सब सामायिक का काल कहलाता है । तथा इसको सामायिक का काल जानते हैं ।