वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1233
From जैनकोष
असत्यचातुर्यबलेन लोकाद्वितं ग्रहीष्यामि बहुप्रकारं।
तथाश्र्वमातंगपुराकराणि कन्यादिरत्नानि च बंधुराणि।।1233।।
असत्य की चतुराई के बल से लोगों से बहुत प्रकार का धन ग्रहण कर लूँगा, ऐसा ध्यान रखना सो मृषानंद नाम का रौद्रध्यान है। बेईमानी, असत्य, ऐसी बोल बोलना जिससे दूसरे को विश्वास उत्पन्न करा दे, ऐसे असत्य की चतुराई के बल से मैं अमुक से बहुत प्रकार का धन ग्रहण कर लूँगा इस प्रकार की वासना रखना सो मृषानंद नाम का रौद्र है। तथा घोड़ा, हाथी, नगर, रत्नों के समूह, सुंदर कन्या आदिक रत्नों को ग्रहण करूँगा, असत्य की चतुराई से मनमाना धन वैभव ग्रहण करूँगा, इस प्रकार का चिंतन रखना मृषानंद नामक रौद्रध्यान है।