पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 73 - समय-व्याख्या: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 11: | Line 11: | ||
[[ ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 74 - समय-व्याख्या | अगला पृष्ठ ]] | [[ ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 74 - समय-व्याख्या | अगला पृष्ठ ]] | ||
[[ ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र गाथा 73 - तात्पर्य-वृत्ति | इसी गाथा की तात्पर्य-वृत्ति टीका]] | [[ ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 73 - तात्पर्य-वृत्ति | इसी गाथा की तात्पर्य-वृत्ति टीका]] | ||
[[ ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - समय-व्याख्या अनुक्रमणिका | समय-व्याख्या अनुक्रमणिका ]] | [[ ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - समय-व्याख्या अनुक्रमणिका | समय-व्याख्या अनुक्रमणिका ]] |
Latest revision as of 13:26, 30 June 2023
खंदा य खंददेसा खंदपदेसा य होंति परमाणू । (73)
इदि ते चदुव्वियप्पा पोग्गलकाया मुणेदव्वा ॥80॥
अर्थ:
स्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश और परमाणु ये चार भेद वाले पुद्गलकाय हैंऐसा जानना चाहिए।
समय-व्याख्या:
अथ पुद्गलद्रव्यास्तिकायव्याख्यानम् ।
पुद्गलद्रव्यविकल्पादेशोऽयम् । पुद्गलद्रव्याणि हि कदाचित्स्कन्धपर्यायेण, कदाचित्स्कन्धदेशपर्यायेण, कदाचित्स्कन्ध-प्रदेशपर्यायेण, कदाचित्परमाणुत्वेनात्र तिष्ठन्ति । नान्या गतिरस्ति । इति तेषां चतुर्विकल्पत्वमिति ॥७३॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, पुद्गल-द्रव्य के भेदों का कथन है ।
पुद्गल-द्रव्य कथंचित स्कन्ध-पर्याय से, कदाचित् स्कन्ध-देश-रूप पर्याय से, कदाचित् स्कन्ध-प्रदेश-रूप पर्याय से और कदाचित् परमाणु-रूप से यहाँ (लोक में) होते हैं; अन्य कोई गति नहीं है । इस प्रकार उनके चार भेद हैं ॥७४॥