ऐरावत: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) जंबूद्वीप के विदेह आदि क्षेत्रों में सातवां क्षेत्र । यह कर्मभूमि जंबूद्वीप की उत्तरदिशा में शिखरी कुलाचल और लवणसमुद्र के बीच में स्थित है । <span class="GRef"> महापुराण 4.49,69.74, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#45|पद्मपुराण - 3.45-47]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#105|पद्मपुराण -3. 105]].159-160, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5. 14 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) जंबूद्वीप के विदेह आदि क्षेत्रों में सातवां क्षेत्र । यह कर्मभूमि जंबूद्वीप की उत्तरदिशा में शिखरी कुलाचल और लवणसमुद्र के बीच में स्थित है । <span class="GRef"> महापुराण 4.49,69.74, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#45|पद्मपुराण - 3.45-47]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#105|पद्मपुराण -3. 105]].159-160, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#14|हरिवंशपुराण - 5.14]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) सौधर्मेंद्र का हाथी । यह श्वेत, अष्टदंतधारी, आकाशगामी और महाशक्तिशाली है । इसके बत्तीस मुँह है, प्रत्येक मुंह में आठ दाँत प्रत्येक दाँत पर एक सरोवर, प्रत्येक सरोवर में एक कमलिनी, प्रत्येक कमलिनी में बत्तीस कमल, प्रत्येक कमल में बत्तीस दल और प्रत्येक दल पर अप्सरा नृत्य करती है । सौधर्मेंद्र इसी हाथी पर जिन शिशु को बिठाकर अभिषेकार्थ मेरु पर ले जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 2.23-56, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_7#26|पद्मपुराण - 7.26-24]], </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.32-40, 38. 21, 43, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 9.90-91, 14.21-24 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) सौधर्मेंद्र का हाथी । यह श्वेत, अष्टदंतधारी, आकाशगामी और महाशक्तिशाली है । इसके बत्तीस मुँह है, प्रत्येक मुंह में आठ दाँत प्रत्येक दाँत पर एक सरोवर, प्रत्येक सरोवर में एक कमलिनी, प्रत्येक कमलिनी में बत्तीस कमल, प्रत्येक कमल में बत्तीस दल और प्रत्येक दल पर अप्सरा नृत्य करती है । सौधर्मेंद्र इसी हाथी पर जिन शिशु को बिठाकर अभिषेकार्थ मेरु पर ले जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 2.23-56, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_7#26|पद्मपुराण - 7.26-24]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#32|हरिवंशपुराण - 2.32-40]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#38|हरिवंशपुराण - 2.38]]. 21, 43, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 9.90-91, 14.21-24 </span></p> | ||
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Revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
1. शिखरी पर्वत का एक कूट व उसका स्वामी देव-देखें लोक - 5.4;
2. पद्म हृद के वन में स्थित एक कूट-देखें लोक - 5.7;
3. उत्तरकुरु के दस द्रहों में-से दो द्रह-देखें लोक - 5.6।
पुराणकोष से
(1) जंबूद्वीप के विदेह आदि क्षेत्रों में सातवां क्षेत्र । यह कर्मभूमि जंबूद्वीप की उत्तरदिशा में शिखरी कुलाचल और लवणसमुद्र के बीच में स्थित है । महापुराण 4.49,69.74, पद्मपुराण - 3.45-47,पद्मपुराण -3. 105.159-160, हरिवंशपुराण - 5.14
(2) सौधर्मेंद्र का हाथी । यह श्वेत, अष्टदंतधारी, आकाशगामी और महाशक्तिशाली है । इसके बत्तीस मुँह है, प्रत्येक मुंह में आठ दाँत प्रत्येक दाँत पर एक सरोवर, प्रत्येक सरोवर में एक कमलिनी, प्रत्येक कमलिनी में बत्तीस कमल, प्रत्येक कमल में बत्तीस दल और प्रत्येक दल पर अप्सरा नृत्य करती है । सौधर्मेंद्र इसी हाथी पर जिन शिशु को बिठाकर अभिषेकार्थ मेरु पर ले जाता है । महापुराण 2.23-56, पद्मपुराण - 7.26-24, हरिवंशपुराण - 2.32-40,हरिवंशपुराण - 2.38. 21, 43, वीरवर्द्धमान चरित्र 9.90-91, 14.21-24