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- {{GP:प्रवचनसार - गाथा 98 - अर्थ}} ...21 KB (922 words) - 13:55, 23 April 2024
- * [[ ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 98 - तात्पर्य-वृत्ति ]] ...36 KB (922 words) - 14:03, 23 April 2024
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- ...तसुदृष्ट्यादेस्तद्गतातिशयेषु या। उद्द्योतादिषु सा तेषां भक्तिराराधनोच्यते ॥98॥</p> ...12 KB (206 words) - 14:40, 27 November 2023
- [[ वर्णीजी-प्रवचन:रयणसार - गाथा 98 | अगला पृष्ठ ]] ...9 KB (14 words) - 11:57, 17 May 2021
- <p> <strong>(98) आत्मरत साधु की भावलिंगिता</str ...10 KB (35 words) - 11:56, 17 May 2021
- ...चित्प्रत्येकमूर्तयः । वल्यः साधारणाः काश्चित्काश्चित्प्रत्येककाः स्फुटम् ।98। तल्लक्षणं यथा भंगें समभागः ...्रत्येक, इसी प्रकार बेलों में कोई लताएँ साधारण तथा कोई प्रत्येक होती हैं ।98। </li> ...26 KB (420 words) - 15:30, 27 November 2023
- [[ वर्णीजी-प्रवचन:परमात्मप्रकाश - गाथा 98 | पूर्व पृष्ठ ]] ...11 KB (38 words) - 11:56, 17 May 2021
- [[ वर्णीजी-प्रवचन:पंचास्तिकाय - गाथा 98 | पूर्व पृष्ठ ]] ...14 KB (46 words) - 16:35, 2 July 2021