योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 163
From जैनकोष
करने-कराने का भाव कर्मोदयजन्य -
सहकारितया द्रव्यमन्येनान्यद् विधीयते ।
क्रियमाणोsन्यथा सर्व: संकल्प: कर्म-बन्धज: ।।१६३।।
अन्वय :- सहकारितया द्रव्यं अन्येन अन्यत् विधीयते ।अन्यथा क्रियमाण: सर्व: संकल्प: कर्म-बन्धज: (भवति) ।
सरलार्थ :- सहकारिता अर्थात् निमित्त की दृष्टि से देखा जाय तो एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से अन्यरूप में किया जाता है । अन्यथा करने-करानेरूप जो संकल्प है, वह सब कर्मबन्ध से उत्पन्न होता है अर्थात् कर्म के उदयजन्य है; उसमें जीव का कुछ कर्तापना नहीं है ।