भीम
From जैनकोष
- वर्तमान कालीन नारद थे– देखें - शलाका पुरुष / ६ ।
- राक्षस जाति के व्यन्तर देवों का एक भेद–देखें - राक्षस।
- रक्षासों का इन्द्र ( देखें - व्यन्तर / २ / १ ) जिसने सगर चक्रवर्ती के शत्रु पूर्णघन के पुत्र मेघवाहन को अजितनाथ भगवान् की शरण में आने पर लंका दी थी जिससे राक्षस वंश की उत्पत्ति हुई (प.पु./५/१६०)।
- पा.पु./सर्ग/श्लोक– पूर्व के दूसरे भव में सोमिल ब्राह्मण के पुत्र थे (२३/८१) पूर्वभव में अच्युत स्वर्ग में देव हुए (३३/१०५)। वर्तमान भव में पाण्डु का कुन्ती रानी से पुत्र थे (८/१६७-२४/७५) ताऊ भीष्म तथा गुरुद्रोणाचार्य से शिक्षा प्राप्त की।(८/२०४-२१४)। लाक्षा गृह दहन के पश्चात् तुण्डी नामक देवी से नदी में युद्ध किया। विजय प्राप्त कर नदी से बाहर आये (१२/३४३) फिर पिशाच विद्याधर को हराकर उसकी पुत्री हिडम्बा से विवाह किया, जिससे घुटुक नामक पुत्र उत्पन्न हुआ (१४/५१-६५)। फिर असुर राक्षस (१४/७५) मनुष्यभक्षी राजा बक को हराया (१४/१३१-१३४)। कर्ण के मदमस्त हाथी को वश में किया (१४/१६८) यक्ष द्वारा गदा प्राप्त की (१४/१०३) द्रौपदी पर कीचक के मोहित होने पर द्रौपदी के वेश में कीचक को मार डाला (१७/२७८) फिर कृष्ण व जरासंघ के युद्ध में दुर्योधन के ९९ भाई तथा और भी अनेकों को मारा (२०/२६६)। अन्त में नेमिनाथ भगवान् के समवसरण में अपने पूर्वभव सुनकर विरक्त हो दीक्षा धारण की (२५/१२-) घोर तपकर अन्त में दुर्योधन के भांजेकृत उपसर्ग को जीत मोक्ष प्राप्त किया। (२५/५२-१३३)। और भी–देखें - पाण्डव।