योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 505
From जैनकोष
निमित्त के अभाव में मोक्ष -
यदा प्रतिपरीणामं विद्यते न निमित्तता ।
परस्परस्य विश्लेषस्तर्योोक्षस्तदा मत: ।।५०६।।
अन्वय : - यदा (जीवकर्मणो:) परस्परस्य परीणामं प्रति निमित्तता न विद्यते तदा तयो: (जीव-कर्मणो: परस्परस्य) विश्लेष: (जायते स:) मोक्ष: मत: ।
सरलार्थ :- जब जीव और कर्म के परस्पर में एक-दूसरे के प्रत्येक परिणाम/पर्याय के संबंध में निमित्तपना नहीं रहता अर्थात् निमित्तपना का अभाव हो जाता है, तब जीव और कर्म - दोनों का जो विश्लेष अर्थात् सर्वथा पृथक् हो जाना है, वह पृथक्पना ही मोक्ष है ।