योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 506
From जैनकोष
जीव का पर्याय के साथ क्षणिक तादात्म्य संबंध -
येन येनैव भावेन युज्यते यन्त्रवाहक: ।
तन्मयस्तत्र तत्रापि विश्वरूपो मणिर्यथा ।।५०७।।
अन्वय : - यन्त्रवाहक: (जीव:) येन येन भावेन युज्यते तत्रापि तत्र तन्मय: एव (भवति) यथा विश्वरूप: मणि: ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार विश्वरूपधारी अर्थात् स्फेटकमणि उज्ज्वल है; इसलिए उसके नीचे जैसा डंक लगाते हैं वैसा ही स्फेटकमणि भासित होता है; उसीप्रकार देहरूपी यन्त्र को धारण करनेवाला जीव जिस-जिस भाव के साथ जुड़ता है, उस-उस भाव के साथ वहाँ वह तन्मय हो जाता है अर्थात् क्षणिक तादात्म्य-संबंधरूप हो जाता है ।