योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 288
From जैनकोष
ज्ञानवान द्रव्य ही वस्तु को जानता है -
ज्ञानं स्वात्मनि सर्वेण प्रत्यक्षमनुभूयते ।
ज्ञानानुभवहीनस्य नार्थज्ञानं प्रसिद्ध्यति ।।२८८।।
अन्वय :- सर्वेण स्व-आत्मनि ज्ञानं प्रत्यक्षं अनुभूयते । ज्ञानानुभवहीनस्य अर्थज्ञानं न प्रसिद्ध्यति ।
सरलार्थ :- एकेन्द्रियादि प्रत्येक जीव अपनी आत्मा में विद्यमान ज्ञान गुण के जाननरूप कार्य का अनुभव करता है । जो द्रव्य अपने में ज्ञान न होने से जाननरूप अनुभव से रहित है अर्थात् अचेतन है, उसे किसी भी द्रव्य का ज्ञान सिद्ध नहीं होता ।