योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 289
From जैनकोष
परोक्ष ज्ञान से आत्मा की प्रतीति होती है -
प्रतीयते परोक्षेण ज्ञानेन विषयो यदि ।
सोsनेन परकीयेण तदा किं न प्रतीयते ।।२८९।।
अन्वय :- यदि परोक्षेण ज्ञानेन विषय: प्रतीयते तदा अनेन परकीयेण (परोक्ष-ज्ञानेन) स: (ज्ञानी आत्मा) किं न प्रतीयते ?
सरलार्थ :- यदि मति-श्रुतरूप परोक्षज्ञान से स्पर्शादि विषयों का स्पष्ट/प्रत्यक्ष (सांव्यवहारिक) ज्ञान होता है तो इस मति-श्रुतरूप परोक्ष ज्ञान से ही ज्ञानमय आत्मा का स्पष्ट प्रत्यक्ष ज्ञान क्यों नहीं हो सकता? अर्थात् अवश्य हो सकता है ।