योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 297
From जैनकोष
मोहरूप परिणाम में कर्म ही निमित्त, जीव-स्वभाव नहीं -
प्रतिबिम्बं यथादर्शे दृश्यते परसंगत: ।
चेतने निर्मले मोहस्तथा कल्मषसंगत: ।।२९७।।
अन्वय :- यथा आदर्शे परसंगत: प्रतिबिम्बं दृश्यते तथा निर्मले चेतने कल्मष-संगत: मोह: (दृश्यते) ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार निर्मल दर्पण में परद्रव्य के संयोग से प्रतिबिंब दिखता है, स्वभाव से नहीं; उसीप्रकार अनादि-अनंत निर्मल/शुद्ध चेतन द्रव्य में द्रव्यमोहरूप पापकर्म के उदय से मोह परिणाम दिखता है, स्वभाव से नहीं ।