योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 171
From जैनकोष
विषयों के ज्ञाता-दृष्टा योगी अबन्धक -
नीरागो विषयं योगी बुध्यमानो न बध्यते ।
परथा बध्यते किं न केवली विश्ववेदक: ।।१७१।।
अन्वय :- नीराग: योगी विषयं बुध्यमान: (अपि) न बध्यते; परथा विश्ववेदक: केवली किं न बध्यते ?
सरलार्थ :- जो वीतरागी योगी अर्थात् मुनिराज हैं, वे विषयों को जानते हुए कर्मबंध को प्राप्त नहीं होते । यदि विषयों को जानने से कर्मबंध होता हो तो विश्व के ज्ञाता केवली कर्मबंध को प्राप्त क्यों नहीं होंगे ?