योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 170
From जैनकोष
श्रावक के परिणामों से मुनिराज को बंध नहीं होता -
परद्रव्यगतै-र्दोषैर्नीरागो यदि बध्यते ।
तदानीं जायते शुद्धि: कस्य कुत्र कुत: कदा ।।१७०।।
अन्वय :- परद्रव्यगतै: दोषै: यदि नीराग: बध्यते; तदानीं कस्य कदा कुत्र कुत: शुदि्घ: जायते ?
सरलार्थ :- परद्रव्य में उत्पन्न होनेवाले दोषों के कारण यदि वीतरागी मुनिराज को कर्म का बंध होता रहे तो फिर किसकी, कब, कहाँ और कैसे शुद्धि हो सकती है? अर्थात् शुद्धि नहीं हो सकती ।