वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1818
From जैनकोष
विनीतवेषधारिण्य: कामरूपा बरस्त्रिय: ।
तवादेशं प्रतीक्षंते लास्यलीलारसोत्सुत्का: ।।1818।।
आदेशप्रतीक्षा में स्थित देवांगनाओ के विषय में प्रबोधन―ये सब खड़ी हुई जो सुंदर देवांगनायें हैं ये बहुत चतुर हैं, विनयशील हैं, सुंदर भेष धारण करने वाली हैं, नृत्य बाजे संगीत आदिक रसो में ये उत्सुक हैं । ये आपके सामने नृत्य गायन आदि करने के लिए आपका चित्त प्रसन्न करने के लिए आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रही हैं । देखो यहीं जब कोई बालक उत्पन्न होता है तो उस बालक को तो दो चार माह तक अपनी भी कुछ सुधि नहीं होती । उसे नहीं पता पड़ता कि ये लोग जो खड़े हुए हैं मेरे पास वे कौन हैं? वह तो जब 8-10 वर्ष का हो जाता है तब सारी बातें सीखता है, मगर ये देव तो उत्पन्न होने के बाद एक मिनट के अंदर ही युवावस्था संपन्न हो जाते हैं । सब कुछ समझ जाते हैं, तो उत्पन्न होते ही ये सब समारोह भी बन जाते हैं और इतनी बातचीत भी चल रही हैं । मंत्री जन कह रहे हैं कि हे नाथ ! यह सब अप्सरावों का समूह है जो आपका यह संकेत चाह रही हैं कि मैं आपका संकेत पाऊँ तो गीत बाजे नृत्य आदि से उत्सव मनाऊँ । यहाँ भी पुत्रोत्पत्ति के समय में लोग बडे-बड़े उत्सव मनाते हैं । वहाँ वह देव जो कि अभी ही उत्पन्न हुआ, बालक के रूप में है वह यहां के बालकों की तरह बेसुध तो नहीं है; वह तो महा बुद्धिमान है, श्रेष्ठ मन वाला है और अंतर्मुहूर्त में ही नवयुवक हो जाता है, समस्त श्रुत ज्ञान का वेत्ता, द्वादशांग का वेत्ता भी होता है, केवल एक अंग बाह्य का परिचय जरा कम रहता है, तो ऐसे उच्च बुद्धिमान सौधर्म इंद्र से मंत्री जन कह रहे हैं कि हे नाथ ! ये अप्सरायें आपको प्रसन्न करने के लिए गीत नृत्य आदि करना चाहती हैं, ये आपके संकेत की प्रतीक्षा में हैं ।