वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 622
From जैनकोष
नासने शयने याने स्वजने भोजने स्थितिम्।
क्षणमात्रमपि प्राणी प्राप्नोति स्मरशल्यत:।।
कामपीड़ितों की नीचदासता- कामदेव की आज्ञा इन तीन जगत के जीवों के सिर पर ऐसी चल रही है कि बड़े-बड़े बुद्धिमान पुरुष भी जिनके ज्ञान का साम्राज्य है लेकिन वे भी अपने शीलरूपी कोट का उल्लंघन करके संभोग के लिए चांडाल की स्त्री का भी दासत्व स्वीकार कर लेते हैं। याने काम के वश होकर बड़े-बड़े बुद्धिमान भी राजा-महाराजा तक भी चांडाल की स्त्री तक के भी दास हो जाते हैं और जो जो भी वह नाच नचाती है वे सभी नाच उन कामी पुरुषों को नाचने पड़ते हैं। कुछ कथन में तो ऐसा भी आया कि हैं तो बड़े उच्च कुल का राजा वह किसी नीच कुल की कन्या में आसक्त हुआ तो विवाह के प्रसंग में यह प्रतिज्ञा कर डाली कि इससे जो बच्चा होगा उसे राज्य देंगे। जो कुलीन हैं, पटरानी हैं, बड़े घर की हैं उनकी वे उपेक्षा कर देते हैं। तो यह नाच नाचना ही तो हुआ। जैसा नाच उसने नचाया वैसा नाच उन काम पुरुषों को नाचना पड़ता है। यों कामव्यथा से पीड़ित पुरुष आत्मा की सुध नहीं ले सकता। भैया ! आत्मध्यान ही वास्तविक शरण है, जिन्हें आत्मध्यान की अपनी प्रकृति बनाना है उन्हें इन ब्रह्मचर्य का मन, वचन, काय से पालन करना होगा।