वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 4-24
From जैनकोष
ब्रह्मलोकालया लौकांतिका ।। 4-24 ।।
लौकांतिकों के निवास का परिचय―इस सूत्र में लौकांतिक देवों का निवास बताया गया है । लौकांतिक देव ब्रह्मलोक आलय वाले होते हैं । अर्थात् इनका निवास ब्रह्मलोक में है । इस सूत्र में दो पद हैं । प्रथम पद का अर्थ है कि ब्रह्मलोक ही है आलय जिसका वे ब्रह्मलोकालय कहलाते हैं । द्वितीय पद का अर्थ है लौकांतिक देव । यहाँ यह बात जानना चाहिये कि ब्रह्मलोक 5वें स्वर्ग को कहते हैं, किंतु ये वैमानिक देव 5वें स्वर्ग में सब जगह नहीं है । 5वें स्वर्ग के अंत में चार दिशाओं में व चार विदिशाओं में ये रहते हैं । वह भी ब्रह्मलोक ही कहलाता है, लेकिन ब्रह्मलोक का आखिरी भाग है । यह कैसे जाना कि ये लौकांतिक देव ब्रह्मलोक के आखिरी भाग में रहते हैं । यह जाना है लोकांत शब्द को सुनकर । लौकांतिक का अर्थ है । लोक के अंत में होने वाले देव । ब्रह्मलोक के अंत को लोकांत कहते हैं और लोकांत में जो देव होते हैं उन्हें लौकांतिक देव कहते है । इस प्रकार यह सिद्ध हुआ कि लौकांतिक देव ब्रह्मलोक में सब जगह नहीं रहते, किंतु ब्रह्मलोक के अंत भाग में रहते हैं ।
लौकांतिक देवों की विशेषता―लौकांतिक का दूसरा अर्थ है लोक याने संसार । उसका अंत ही जिनका प्रयोजन है वे लौकांतिक देव हैं । ये लौकांतिक देव एक भवावतारी होते हैं । वहाँ से चलकर मनुष्य होकर उस ही मनुष्य भव से मोक्ष जाते हैं । अर्थात् जन्म जरा मृत्यु से भरे हुये संसार का अंत ये कर डालते हैं, इस कारण ये लौकांतिक देव कहलाते हैं । ये लौकांतिक देव भी कल्पवासी ही कहलाते हैं फिर भी ये देवर्षि हैं । अन्य सब देवों की दृष्टि में वे महान् माने जाते हैं और ये सब देव अपने ही स्थान पर रहकर धर्मचिंतन आत्ममनन चर्चा में अपना समस्त समय बिताते हैं । ये प्रवीचार रहित होते हैं । इनके कामवासना नहीं है और न इनके देवियाँ हैं । इस प्रकार वैमानिक नामक निकाय में ही ये लौकांतिक देव गिने जाते हैं । अब इन लौकांतिक देवों का विशेष प्रतिपादन करने के लिये सूत्र कहते हैं ।