न मानत यह जिय निपट अनारी: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: न मानत यह जिय निपट अनारी, सिख देत सुगुरु हितकारी ।।टेक ।।<br> कुमतिकुनारि ...) |
No edit summary |
||
Line 14: | Line 14: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:दौलतरामजी]] | [[Category:दौलतरामजी]] | ||
[[Category:आध्यात्मिक भक्ति]] |
Latest revision as of 07:07, 16 February 2008
न मानत यह जिय निपट अनारी, सिख देत सुगुरु हितकारी ।।टेक ।।
कुमतिकुनारि संग रति मानत, सुमतिसुनारि बिसारी ।।
नर परजाय सुरेश चहैं सो, चख विषविषय विगारी ।
त्याग अनाकुल ज्ञान चाह, पर-आकुलता विसतारी ।।१ ।।
अपनी भूल आप समतानिधि, भवदुख भरत भिखारी ।
परद्रव्यन की परनति को शठ, वृथा वनत करतारी ।।२ ।।
जिस कषाय-दव जरत तहाँ, अभिलाष छटा घृत डारी ।
दुखसौं डरै करै दुखकारनतैं नित प्रीति करारी ।।३ ।।
अतिदुर्लभ जिनवैन श्रवनकरि, संशयमोह निवारी ।
`दौल' स्वपर-हित-अहित जानके, होवहु शिवमग चारी ।।४ ।।