वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1004
From जैनकोष
हृषीकभीमभोगींद्रक्रुद्धदर्पोपशांतये।
स्मरंति वीरनिर्दिष्टं योगिन: परमाक्षरम्।।1004।।
इंद्रिय सर्प के क्रुद्ध दर्प की उपशांति के लिये योगियों द्वारा महामंत्र का स्मरण― इंद्रियरूपी जो भयंकर सर्प है इसके आ गया क्रोध। जैसे सर्प क्रुद्ध हो जाय तो अनर्थ हो जाता, इसी तरह ये इंद्रियाँ क्रुद्ध हो जायें तो अनर्थ हो जाता। इंद्रिय के क्रुद्ध होने का अर्थ हे विषयों के लिए आकुलित हो जाना। यह ही उनका क्रोध हैं। कहते भी हैं कि यह बड़ा शांत रहता है, इसकी इंद्रियाँशांत है, और जब इंद्रिय में प्रवृत्ति करे कोई विषय भोग उपभोग में स्वच्छंदता से विचरण करे कोई तो यह ही हे इंद्रिय का क्रोध। वह क्रोध आत्मा के गुणों को फूंक देता है, तो इन इंद्रियरूपी सर्पों के क्रोध की शांति के लिए प्रभु ने योगियों के लिए परम अक्षर का निर्देश किया है और उसे योगीजन स्मरण करते हैं। जब कोई विकार चित्त में बैठे तो उसे विपदा माने और उस विपदा से दूर होने के ध्येय से पहिले नमस्कार मंत्र का ध्यान कीजिये। करते तो हैं बहुत से लोग मगर, विपदा और कष्ट समझकर उस विपदा के नाश करने के लिए स्मरण करते हैं। जैसे किसी ने धावा बोल दिया, कोई आक्रमण कर रहा या कोई बड़े धन के हानि के समाचार सुन लिया या कोई इष्टवियोग हो रहा, मुकदमा चल रहा तो मेरी जीत हो जाय यों आशा से अनेक बातों को उपद्रव मानकर णमोकार मंत्र का स्मरण तो करते हैं, पर हे भव्य पुरुष देख तो सही, तेरे पर विपत्ति है विषय कषायों के आक्रमण की। वही महान विपदा है, बाकी और क्या विपदा? मान लो बाहरी बात 10, 20 हजार निकल गए। तो निकल जाने दो, आपके थे ही कहाँ? कुछ धन आ गया तो क्या आ गया? आपके आत्मा में कौनसी वृद्धि हो गई? जिनका सुयोग हुआ है उनका वियोग तो नियम से होगा। उन पदार्थों के वियोग से विपदा क्यों मानते हो? वह तो बाहरी बात है। आये तो आये जाये तो जाये। विपदा तो इस जीव पर है विषय कषायों की, विकल्पों की। जहाँविकल्प हुए वही वह बरबाद हुआ, और व्यर्थ झंझटों में फँस जाता है। तो ये इंद्रिय जब क्रुद्ध हो रही हों तो उनकी शांति के लिए तू नमस्कार मंत्र का स्मरण कर। सीधी बात क्या हुई? इंद्रियविषयों के क्रोध की शांति के लिए तू देव और गुरु का ध्यान कर, क्योंकि गुरु इंद्रिय परविजय किए हुए हैं, और वे इंद्रियविषय व कषाय विकल्प से परे हो गए। तो ऐसे शुद्ध आत्माओं का स्मरण कर। तो उससे यह इंद्रियविषयों का क्रोध शांत हो जाता है।