वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1017
From जैनकोष
अनासादितिनिर्वेदं विषयैर्व्याकुलीकुम्।
पतत्येव जगज्जन्मदुर्गे दु:खाग्निदीपिते।।1017।।
रागी विषयविह्वल प्राणियों का संसारकारागृह में पतन― इस जीव ने, इस संसारी प्राणी ने कभी वैराग्य को प्राप्त नहीं किया। और, यही कारण हे कि अब तक यह व्याकुल हो रहा है। जहाँराग है वहाँ उसी समय अनाकुलता है। जैसे यहाँहम बाहरी चीजों में प्रयोग करके देख लेते हैं कि इसका क्या असर है, इस चीज को इसमें मिला देंगे तो क्या बनता है? इसमें से इसे हटा देंगे तो क्या बन जाता है? जैसे हम यहाँ पौद्गलिक संयोग वियोग पर परीक्षा कुछ करते रहते हैं इस तरह जरा यहाँ के भी इस संयोग वियोग की परीक्षा तो कीजिए। राग का संयोग हुआ तो आत्मा में क्या बात गुजरती है? वही बात यहाँकहा हे कि विरागता को प्राप्त न हो कोई तो वह व्याकुल ही रहता है। और, जहाँराग अपराध किया तो उसके फल में दावानल से जाज्वल्यमान इस संसार कैद में इसको कैदीबनकर रहना पड़ता है। अपराध का अर्थ है जहाँ आत्मा दृष्टि में न हो ऐसा भाव। यह बात शब्द से निकल रही है।राध धातु संसिद्धि अर्थ में है राधृ संसिद्धौ अर्थात् अपगत हो गई है राधा जिसके, सिद्धि नहीं रही है जिसके उसे कहते हैं अपराध। फिर लोग असिद्धि में भी अपराध का प्रयोग करने लगे। संसार की जितनी बातें हैं, जिनका लोग अपराध का निर्णय देते हैं वे तो सब बातें अपराध हैं। जैसे कि आवश्यक का क्या अर्थ है? तो लोग कह देंगे― जरूरी काम, पर आवश्यक का अर्थ जरूरी है नहीं। जरूरी अर्थ कहाँ से निकाल लिया? शब्द में तो पड़ा ही नहीं है। न वश: इति अवश: अवशस्य कर्म आवश्यकम् अर्थात् जो इंद्रिय के वशीभूत नहीं है ऐसे पुरुष के काम नाम है आवश्यक। उसको जरूरी कहाँपड़ी हुई है? अब जो इंद्रिय के वशीभूत नहीं हैं ऐसे पुरुषों का काम जरूर करने लायक है इसलिए आवश्यक का अर्थ जरूर कर दिया, पर शब्द में जरूरी अर्थ नहीं है। इसी तरह लोक में जिन बातों को निरपराध कहते हैं जैसे कोर्इ घर में रह रहा है, अपनी स्त्री पुत्रादिक से संतुष्ट है। खूब मनमाना किराया आ रहा, बहुत बड़ी जायदाद है, सब प्रकार के ठाठ हैं, वह किसी को नाजायज सताता नहीं किसी की कोर्इ चीज चुराता नहीं, किसी को ठगता नहीं, किसी से उसका कुछ प्रयोजन ही क्या? क्योंकि उसको तो घर बैठे बड़ी-बड़ी आमदनी हो रही है, और वह अपनी स्त्रीपुत्रादिक के बीच खूब मौज से रहता है, तो बताइये ऐसे पुरुष को क्या निरपराध कहेंगे? अरे उसका अपने स्त्रीपुत्रादिक में तेज राग लगा है उसका बड़ा भारी अपराध वह कर रहा है। उसे भेदविज्ञान नहीं जगा, वह तो अपने स्त्रीपुत्र धन वैभव वगैरह में बड़ा राग किए हुए हैं तो वह तो बड़ा अपराधी है तो जो अपराध करता है। जो विरागत को प्राप्त नहीं होता अतएव विषय में वह व्याकुल रहता है वह दुखाग्नि से ज्वलित इस संसाररूपी जेल में पड़ा हुआ घोर दु:ख भोगता रहता है।