Category:करणानुयोग
From जैनकोष
करणानुयोग का लक्षण
रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 44 लोकालोकविभक्तेर्युगपरिवृत्तेश्चतुर्गतीनां च। आदर्शमिव तथामतिरवैति करणानुयोगं च ॥44॥
= लोक अलोक के विभाग को, युगों के परिवर्तन को तथा चारों गतियों को दर्पण के समान प्रगट करनेवाले करणानुयोग को सम्यग्ज्ञान जानता है।
( अनगार धर्मामृत अधिकार 3/10/260)।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 42/182/10 त्रिलोकसारे जिनांतरलोकविभागादिग्रंथव्याख्यानं करणानुयोगो विज्ञेयः।
= त्रिलोकसार में तीर्थंकरों का अंतराल और लोकविभाग आदि व्याख्यान है। ऐसे ग्रंथरूप करणानुयोग जानना चाहिए।
(पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / गाथा 173/154/17)।
Pages in category "करणानुयोग"
The following 200 pages are in this category, out of 3,357 total.
(previous page) (next page)क
- कुडइ
- कुणीयान
- कुब्जक संस्थान
- कुब्जा
- कुभोगभूमि
- कुमानुष
- कुमुद
- कुमुदकूट
- कुमुदप्रभा
- कुमुदशैल
- कुमुदा
- कुमुदांग
- कुयोनि
- कुरु
- कुरुद्वय
- कुल
- कुलकोटि
- कुलगिरि
- कुलपर्वत
- कुशपुर
- कुशवर
- कुष्मांड
- कुसुम
- कुह्य
- कूट
- कूटमातंगपुर
- कूर्मोन्नत योनि
- कूष्मांडगणमाता
- कृतकृत्य छद्मस्थ
- कृतकृत्य वेदक
- कृतमाला
- कृतमाल्य
- कृति
- कृतिका
- कृतिमूल
- कृत्तिका
- कृपाण
- कृष्टि
- कृष्टिकरण
- कृष्ण वर्मा
- कृष्णलेश्या
- केंद्रवर्ती वृत
- केतक
- केतवा
- केतु
- केतुमाल
- केरल
- केवलज्ञानावरण
- केवलदर्शनावरण
- केवललब्धि
- केवलशान
- केवलाचरण
- केवली समुद्घात
- केश
- केशाग्र
- केसरी
- केसरीह्रद
- कैरल
- कैलास
- कैलासवारुणी
- कैवल्य
- कैवल्यनवक
- कोश
- कोशल
- कोष्ठ बुद्धि ऋद्धि
- कोष्ठबुद्धि
- कोष्ठा
- कोसल
- कौबेरी
- कौशिकी
- कौस्तुभ
- कौस्तुभाभास
- क्रमकरण
- क्रमण
- क्रियादृष्टि
- क्रियावाद
- क्रियावादी
- क्रियाविशाल
- क्रौंचवर
- क्षणलव प्रतिबुद्धता
- क्षत्रवती
- क्षपक
- क्षपकश्रेणी
- क्षपण
- क्षपित कर्मांशिक
- क्षय
- क्षयोपशम
- क्षायिक उपभोग
- क्षायिक दान
- क्षायिक भाव
- क्षायिक भोग
- क्षायिक लब्धि
- क्षायिक लाभ
- क्षायिक वीर्य
- क्षायिक शुद्धि
- क्षायिक सम्यक्त्व
- क्षायिक सम्यग्ज्ञान
- क्षायिक सम्यग्दर्शन
- क्षायिक-उपभोग
- क्षायिकज्ञान
- क्षायिकदर्शन
- क्षायिकदान
- क्षायिकभाव
- क्षायिकभोग
- क्षायिकलब्धि
- क्षायिकवीर्य
- क्षायोपशमिक
- क्षायोपशमिक अज्ञान
- क्षायोपशमिक लब्धि
- क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन
- क्षार राशि
- क्षीणकषाय
- क्षीररस
- क्षीरवर
- क्षीरस्राविणी
- क्षीरस्रावी ऋद्धि
- क्षीरोदसागर
- क्षीरोदा
- क्षुद्रभव
- क्षुद्रहिमवान्
- क्षुल्लक भव ग्रहण
- क्षेत्र
- क्षेत्र - आहारक
- क्षेत्र - इंद्रिय
- क्षेत्र - कषाय
- क्षेत्र - काय
- क्षेत्र - गति
- क्षेत्र - ज्ञान
- क्षेत्र - दर्शन
- क्षेत्र - भव्यत्व
- क्षेत्र - योग
- क्षेत्र - लेश्या
- क्षेत्र - वेद
- क्षेत्र - संज्ञी
- क्षेत्र - संयम
- क्षेत्र - सम्यक्त्व
- क्षेत्र 01
- क्षेत्र 02
- क्षेत्र 03
- क्षेत्र 04 -1
- क्षेत्र 04 -2
- क्षेत्र 04 -4
- क्षेत्र आर्य
- क्षेत्र ऋद्धि
- क्षेत्र परिवर्तन
- क्षेत्रपरिवर्तन
- क्षेत्रप्रमाण के भेद
- क्षेत्रवान्
- क्षेत्रविपाकी प्रकृति
- क्षेप
- क्षेम
- क्षेमंकर
- क्षेमपुर
- क्षेमपुरी
- क्षेमा
- क्ष्वेलौषध