कविवर श्री द्यानतरायजी कृत भजन: Difference between revisions
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Revision as of 11:22, 10 February 2008
- आतम अनुभव कीजै हो
- आतम अनुभव सार हो, अब जिय सार हो, प्राणी
- आतम काज सँवारिये, तजि विषय किलोलैं
- आतम जान रे जान रे जान
- आतम जाना, मैं जाना ज्ञानसरूप
- आतम जानो रे भाई!
- आतम महबूब यार, आतम महबूब
- आतमरूप अनूपम है, घटमाहिं विराजै हो
- आपा प्रभु जाना मैं जाना
- आतमरूप सुहावना, कोई जानै रे भाई ।
- आतमज्ञान लखैं सुख होइ
- इस जीवको, यों समझाऊं री!
- ए मेरे मीत! निचीत कहा सोवै
- कर कर आतमहित रे प्रानी
- कर रे! कर रे! कर रे!, तू आतम हित कर रे
- कर मन! निज-आतम-चिंतौन
- कारज एक ब्रह्महीसेती
- घटमें परमातम ध्याइये हो, परम धरम धनहेत
- चेतनजी! तुम जोरत हो धन, सो धन चलत नहीं तुम लार
- चेतन! तुम चेतो भाई, तीन जगत के नाथ
- चेतन प्राणी चेतिये हो,
- चेतन! मान ले बात हमारी
- जगतमें सम्यक उत्तम भाई
- जानत क्यों नहिं रे, हे नर आतमज्ञानी
- जानो धन्य सो धन्य सो धीर वीरा
- जो तैं आतमहित नहिं कीना
- तुमको कैसे सुख ह्वै मीत!
- तुम चेतन हो
- तुम ज्ञानविभव फूली बसन्त, यह मन मधुकर
- देखे सुखी सम्यकवान
- देखो भाई! आतमराम विराजै
- निरविकलप जोति प्रकाश रही
- पायो जी सुख आतम लखकै
- प्राणी! आतमरूप अनूप है, परतैं भिन्न त्रिकाल
- प्राणी! सो%हं सो%हं ध्याय हो
- बीतत ये दिन नीके, हमको
- भजो आतमदेव, रे जिय! भजो आतमदेव, लहो
- भवि कीजे हो आतमसँभार, राग दोष परिनाम डार
- भ्रम्योजी भ्रम्यो, संसार महावन, सुख सो रमन्त
- भाई! अब मैं ऐसा जाना
- भाई कौन कहै घर मेरा
- भाई! ब्रह्मज्ञान नहिं जाना रे
- भाई! ज्ञान बिना दुख पाया रे
- भाई! ज्ञानी सोई कहिये
- भैया! सो आतम जानो रे!
- मगन रहु रे! शुद्धातममें मगन रहु रे
- मन! मेरे राग भाव निवार
- मैं निज आतम कब ध्याऊंगा
- रे भाई! मोह महा दुखदाता
- लाग रह्यो मन चेतनसों जी
- लागा आतमसों नेहरा
- लागा आतमरामसों नेहरा
- वे परमादी! तैं आतमराम न जान्यो
- सब जगको प्यारा, चेतनरूप निहारा
- सुन चेतन इक बात
- सुनो! जैनी लोगो, ज्ञानको पंथ कठिन है
- सो ज्ञाता मेरे मन माना, जिन निज-निज पर पर जाना
- श्रीजिनधर्म सदा जयवन्त
- शुद्ध स्वरूपको वंदना हमारी
- हम लागे आतमरामसों
- हम तो कबहुँ न निज घर आये
- हो भैया मोरे! कहु कैसे सुख होय
- वे कोई निपट अनारी, देख्या आतमराम
- ज्ञाता सोई सच्चा वे, जिन आतम अच्चा
- ज्ञान सरोवर सोई हो भविजन
- ज्ञान ज्ञेयमाहिं नाहिं, ज्ञेय हू न ज्ञानमाहिं
- ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै
- ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै
- अरहंत सुमर मन बावरे
- ए मान ये मन कीजिये भज प्रभु तज सब बात हो
- चौबीसौं को वंदना हमारी
- जिन के भजन में मगन रहु रे!
- जिन जपि जिन जपि, जिन जपि जीयरा
- जिन नाम सुमर मन! बावरे! कहा इत उत भटकै
- जिनरायके पाय सदा शरनं
- जिनवरमूरत तेरी, शोभा कहिय न जाय
- तू ही मेरा साहिब सच्चा सांई
- तेरी भगति बिना धिक है जीवना
- मानुष जनम सफल भयो आज
- मैं नूं भावैजी प्रभु चेतना, मैं नूं भावै जी
- प्रभु! तुम नैनन-गोचर नाहीं
- प्रभु तुम सुमरन ही में तारे
- प्रभु तेरी महिमा किहि मुख गावैं
- रे मन! भज भज दीनदयाल
- वीतराग नाम सुमर, वीतराग नाम
- हम आये हैं जिनभूप! तेरे दरसन को
- अब समझ कही
- आरसी देखत मन आर-सी लागी
- काहेको सोचत अति भारी, रे मन!
- कौन काम अब मैंने कीनों, लीनों सुर अवतार हो
- गलतानमता कब आवैगा
- चाहत है सुख पै न गाहत है धर्म जीव
- जीव! तैं मूढ़पना कित पायो
- झूठा सपना यह संसार
- त्यागो त्यागो मिथ्यातम, दूजो नहीं जाकी सम
- तू तो समझ समझ रे!
- तेरो संजम बिन रे, नरभव निरफल जाय
- दियैं दान महा सुख पावै
- दुरगति गमन निवारिये, घर आव सयाने नाह हो
- धिक! धिक! जीवन समकित बिना
- नहिं ऐसो जनम बारंबार
- निज जतन करो गुन-रतननिको, पंचेन्द्रीविषय
- परमाथ पंथ सदा पकरौ
- प्राणी लाल! छांडो मन चपलाई
- प्राणी लाल! धरम अगाऊ धारौ
- भाई! कहा देख गरवाना रे
- भाई काया तेरी दुखकी ढेरी
- भाई! ज्ञानका राह दुहेला रे
- भाई! ज्ञानका राह सुहेला रे
- मानों मानों जी चेतन यह
- मिथ्या यह संसार है, झूठा यह संसार है रे
- मेरी मेरी करत जनम सब बीता
- मेरे मन कब ह्वै है बैराग
- मोहि कब ऐसा दिन आय है
- ये दिन आछे लहे जी लहे जी
- रे जिय! जनम लाहो लेह
- विपतिमें धर धीर, रे नर! विपतिमें धर धीर
- समझत क्यों नहिं वानी, अज्ञानी जन
- संसारमें साता नाहीं वे
- सोग न कीजे बावरे! मरें पीतम लोग
- हम न किसीके कोई न हमारा, झूठा है जगका ब्योहारा
- हमारो कारज कैसें होय
- हमारो कारज ऐसे होय
- हमारे ये दिन यों ही गये जी
- हमारो कारज कैसें होय
- हमारो कारज ऐसे होय
- हमारे ये दिन यों ही गये जी
- भाई धनि मुनि ध्यान-लगायके खरे हैं
- यारी कीजै साधो नाल
- सोहां दीव (शोभा देवें) साधु तेरी बातड़ियां
- गौतम स्वामीजी मोहि वानी तनक सुनाई
- जिनवानी प्रानी! जान लै रे
- वे प्राणी! सुज्ञानी, जिन जानी जिनवानी
- मैं न जान्यो री! जीव ऐसी करैगो
- रे जिय! क्रोध काहे करै
- सबसों छिमा छिमा कर जीव!
- जियको लोभ महा दुखदाई, जाकी शोभा (?)
- गहु सन्तोष सदा मन रे! जा सम और नहीं धन रे
- साधो! छांडो विषय विकारी । जातैं तोहि महा दुखकारी
- वे साधौं जन गाई, कर करुना सुखदाई
- कर्मनिको पेलै, ज्ञान दशामें खेलै
- खेलौंगी होरी, आये चेतनराय
- चेतन खेलै होरी
- नगर में होरी हो रही हो
- पिया बिन कैसे खेलौं होरी
- भली भई यह होरी आई, आये चेतनराय
- परमगुरु बरसत ज्ञान झरी
- री! मेरे घट ज्ञान घनागम छायो
- कहे सीताजी सुनो रामचन्द्र
- सुरनरसुखदाई, गिरनारि चलौ भाई
- आरति श्रीजिनराज तिहारी, करमदलन संतन हितकारी
- करौं आरती वर्द्धमानकी । पावापुर निरवान थान की
- मंगल आरती आतमराम । तनमंदिर मन उत्तम ठान
- आरति कीजै श्रीमुनिराजकी, अधमउधारन आतमकाजकी